पश्च वर्त्स्य मतलब - वे ध्वनियाँ जो कठोर तालु के अग्र भाग तथा वर्त्स्य के बीच के स्थान से उच्चरित होती हैं उन्हें पश्च-वर्त्स्य ध्वनियाँ कहते हैं, जैसे- 'ट्, ठ्, ड्, ड़्, ढ्, ढ़्, ण्'। संस्कृत में ये ध्वनियाँ मूर्धा से उच्चरित होने के कारण मूर्धन्य कही जाती थीं।
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